पशु-पक्षियों व पर्यावरण के लिए नुकसानदायक है चीनी मांझा

चीनी मांझा न केवल मनुष्यों के लिए, बल्कि पशु-पक्षियों और पर्यावरण के लिए भी नुकसानदायक है। यह बात अमर उजाला फाउंडेशन के संवाद कार्यक्रम में वक्ताओं ने छात्रों को बताई। उन्होंने बच्चों को चीनी मांझे के इस्तेमाल को पूरी तरह से बंद करने के लिए प्रेरित किया। कहा कि युवाओं में पतंगबाजी का शौक होना स्वाभाविक है, लेकिन इसमें साधारण किस्म का तागा ही इस्तेमाल किया जाए।शहर के बीआर मॉर्डन स्कूल में आयोजित संवाद कार्यक्रम में प्रधानाचार्य व भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता गोपाल ममगाईं ने चीनी मांझे की बनावट व पर्यावरण में मांझे से होने वाले नुकसान के बारे में तकनीकी जानकारियां दीं। बताया कि मांझा को प्लास्टिक या अन्य किस्म के मांझा की तरह नहीं बनाया जाता, बल्कि इसे नायलॉन व उच्च दबाव में मैटेलिक पाउडर से तैयार किया जाता है। इस मांझे की तारक क्षमता (स्ट्रेचेबल) प्लास्टिक मांझे की ही तरह होती है। बताया कि जब पतंगबाज चीनी मांझे को खींचता है तो वह टूटने के बजाय और अधिक फैलता है। जिससे मांझे को आसानी से नहीं काटा जा सकता, इसे नष्ट होने में भी काफी समय लगता है।

प्रभारी कोतवाल पौड़ी अमरजीत सिंह रावत ने बताया कि तारों व पेड़ों से लटकता चीनी मांझा राहगीरों के लिए मौत का कारण बनता जा रहा है। हालांकि पौड़ी व आसपास के क्षेत्रों में चीनी मांझे की बिक्री या इससे हुए घटनाक्रम अभी तक दर्ज नहीं हुए हैं। एनजीटी ने 2017 से देश भर में नायलॉन या चीनी मांझे की खरीद, ब्रिकी, भंडारण व इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई है। नियमों के उल्लंघन पर पर्यावरण संरक्षण अधिनियम-1986 के तहत पांच साल की सजा व एक लाख तक के जुर्माने का प्रावधान है। पतंग व्यापारी मो. इमरान ने बताया कि पौड़ी में पतंगबाजी नाममात्र की ही होती है।