क्या अब नहीं करनी होगी आर्कटिक पर बर्फ पिघलने की चिंता? साइंटिस्ट खुद ‘उगाएंगे’ वहां आइस, जानिए कैसे

पूरी पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे से वैज्ञानिक ही नहीं कई लोग चिंचित हैं. इसका अगर सबसे बड़ा खतरा आर्कटिक इलाके की तेजी से पिघलती बर्फ बताई जा रही है. जिसके कारण दुनिया के कई बड़े शहर तक जल्दी ही डूबने की हालत में पहुंचने लगे हैं. हर कुछ महीने बात नए आंकड़े आर्कटिक के हाल को और भयावह दिखाते हैं, लेकिन उसक हल की बात कम हो होती है. अब जलवायु परिवर्तन की इस बड़ी चिंता का वैज्ञानिकों ने एक बहुत ही कारगर समाधान निकालने का दावा किया है. उन्होंने एक ऐसा अनूठा तरीका निकाला है, जो उन्हें बर्फ “बढ़ाने” और आर्कटिक सागर को “फिर से जमने” के असंभव काम में मदद करेगा. यानी अब एक तरह से आर्कटिक में बर्फ “उगाई” जा सकेगी.

बहुत बड़ा है खतरा!
न्यू साइंटिस्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि अभी कोई कार्रवाई नहीं की गई, तो जलवायु परिवर्तन में तेजी से इजाफे के कारण आर्कटिक “2030 के दशक में गर्मियों में बर्फ रहित” हो जाएगा जो ग्रह के लिए विनाशकारी होगा. अन्य रिपोर्टों के अनुसार, भले ही ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में तेजी से कमी लाने जैसे उपाय अपनाए जाएं, लेकिन यह आर्कटिक को “बर्फ रहित” होने से नहीं रोक पाएगा. आर्कटिक महासागर में गायब हो रही बर्फ हर दशक में आर्कटिक महासागर अपनी लगभग 13 फीसद बर्फ खो रहा है.

मुश्किल हैं परम्परागत उपाय
जलवायु परिवर्तन के इस भीषण प्रभाव को रोकने के लिए, दुनिया भर में उत्सर्जन में नाटकीय रूप से कमी लाने की ज़रूरत होगी, जिससे वैज्ञानिक कम समय में इसे रोकने के तरीके खोज रहे हैं. इन तरीकों में से, वैज्ञानिक जमे हुए आर्कटिक महासागर के कुछ हिस्सों में समुद्री जल पंप करने पर विचार कर रहे हैं.

क्या वाकई दम है इस दावे में?
इस दावे में दम बताया जा रहा है क्योंकि शुरुआती परीक्षण अच्छी उम्मीद देने वाले साबित हुए हैं. परीक्षण छोटे पैमाने पर भी सफल रहे हैं. यह तो तरह से फायदेमंद होगा. पहला तो बर्फ पिघलने की रफ्तार में तेजी से कमी आएगी क्योंकि बर्फ पर पानी की परत डाल दी गई है. उसके बाद पहले से मौजूद बर्फ पर अतिरिक्त बर्फ जम जाएगी.

क्या कोई जोखिम भी है?
न्यू साइंटिस्ट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, “अनपेक्षित परिणामों का जोखिम” हो सकता है, जैसे कि बर्फ के आवरण में कमी से वन्यजीवों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है. द गार्जियन से बात करते हुए, डेल्फ़्ट यूनिवर्सिटी ऑफ़ टेक्नोलॉजी के सहायक प्रोफेसर हायो हेंड्रिक्स ने कहा कि यह कोई “समाधान” नहीं बल्कि एक “चिपकाने वाला प्लास्टर” है, जिसका उपयोग “छोटे पैमाने” पर किया जा सकता है.