पृथ्वी गर्म हो रही है, हमारे वैज्ञानिक इसके लिए चिंचित हैं. वे चाहते हैं दुनिया में ऐसा सभी मानवीय कार्यों पर लगाम लगे, जिससे ग्लोबल वार्मिंग हो रही है. वे यह भी जानते हैं कि हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि यह सब बहुत जरूरी भले ही हो, लेकिन काफी नहीं है. ऐसे में दुनिया को ठंडी रखने के उपायों पर भी जोर है. इसके लिए एक समाधान जियोइंजीनियरिंग है जिसमें वायुमंडल में ऐसे पदार्थ का छिड़काव किया जाए जिससे सूर्य से आने वाली काफी रोशनी उसी से टकरा कर लौट जाए. इसमें सल्फर के पदार्थ का छिड़काव सुझाया जाताहै, लेकिन अब नई स्टडी में इसकी जगह हीरे के धूल को छिड़कने का सुझाव दिया है.
हीरा है समाधान
जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन ने यह अनोखा सुझाव दिया है. इसके अनुसार, वायुमंडल में हीरे की धूल को इंजेक्ट करने से ग्रह को संभावित रूप से 1.6ºC तक ठंडा किया जा सकता है. ETH ज्यूरिख के जलवायु वैज्ञानिक सैंड्रो वटियोनी के नेतृत्व में, शोध में पता लगाया गया है कि क्या हीरे, सल्फर जैसी सामान्य रूप से इस्तेमाल की जाने वाली सामग्रियों के विपरीत, स्ट्रेटोस्फेरिक एरोसोल इंजेक्शन के लिए एक सुरक्षित और अधिक प्रभावी तरीका पेश कर सकते हैं.
सल्फर के कण भी कर सकते हैं ये काम
इस विधि का मकसद ग्लोबल वार्मिंग को कम करने के लिए सूर्य के प्रकाश को वापस अंतरिक्ष में रिफ्लेक्ट करना है. जैसा कि जियोइंजीनिरिंग तकनीक में बताया जाता है. इस प्रक्रिया में सल्फर एक तरह का कूलिंग एजेंट के तौर पर काम करता है. यह ज्वालामुखी विस्फोटों से प्रेरित है जो वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड को इंजेक्ट करते हैं.
पर हीरा ही क्यों?
हीरे रासायनिक रूप से निष्क्रिय होते हैं और वे सफ्लर के खतरे पैदा नहीं करेंगे. वटियोनी और उनकी टीम ने विभिन्न सामग्रियों के प्रभाव का आकलन करने के लिए जटिल जलवायु मॉडल चलाए. हीरे अपने परावर्तक गुणों और एक साथ चिपके बिना ऊपर रहने की क्षमता कारण अधिक उम्मीदें जगाते हैं. ऐसे में वे सल्फर से बेहतर कूलिंग एजेंट साबित होंगे.
हीरे की ऊंची लागत
हीरे एक आशाजनक समाधान पेश कर सकते हैं, लेकिन उनकी लागत एक बड़ी कमी है. यह एक बड़ी समस्या हो सकती है. सिंथेटिक हीरे की धूल की अनुमानित लागत लगभग 4 करोड़ 20 लाख रुपये प्रति टन है, इसलिए उत्पादन को बढ़ाकर 5 मिलियन टन प्रति वर्ष करने के लिए भारी लागत आएगी. कॉर्नेल विश्वविद्यालय के एक इंजीनियर डगलस मैकमार्टिन के अनुसार, 2035 से 2100 तक हीरे की धूल को तैनात करने की लागत 147.1250 खरब रुपये तक पहुंच सकती है.
फिर भी सल्फर अधिक पसंद
इसमें कोई शक नहीं की यह कीमत अपेक्षाकृत सस्ते सल्फर से कहीं अधिक है, जो आसानी से उपलब्ध है और इसे फैलाना बहुत आसान है. मैकमार्टिन का सुझाव है कि सल्फर अभी भी अपनी कम लागत और उपयोग में आसानी के कारण पसंदीदा सामग्री हो सकती है. हीरे जैसी वैकल्पिक सामग्रियों के अध्ययन सहित जियोइंजीनियरिंग रिसर्च एक विवाद का विषय बना हुआ है.